जयपुर. वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझ रही प्रदेश की गहलोत सरकार अपनी योजनाओं का दायरा घटाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए सरकार अपनी 250 से ज्यादा योजनाओं की समीक्षा करने करने जा रही है। सरकार की मंशा है कि इन योजनाओं में कॉमन नेचर की योजनाओं को एक जगह लाया जाए ताकि इनके प्रशासनिक खर्च कम हों साथ ही योजनाओं के दोहरे फायदे को भी रोका जा सके। इसके लिए मुख्य सचिव डीबी गुप्ता ने सभी विभागों को प्रपत्र जारी किया है कि वे अपने विभागों की ऐसी योजनाएं चिन्हित करें जिन्हें केंद्रीय योजनाओं अथवा राज्य सरकार की योजनाओं के साथ मर्ज किया जा सके।
प्रपत्र में विभागों से एक प्रोजेक्ट या योजना में लगे अधिकारियों और कर्मचारियों का पूरा ब्योरा मांगा गया है ताकि गैर जरूरी स्टाफ को हटाकर अन्य कामों में लगाया जा सके या कम किया जा सके। इसके लिए 4 से 15 नवंबर तक विभागवार बैठकें होंगी। प्रदेश में चल रही मौजूदा करीब 250 योजनाओं में से 30 बड़ी केंद्रीय योजनाएं हैं। सब कैटेगरी की भी इतनी ही योजनाएं हैं। इसके अलावा करीब 200 योजनाएं राज्य सरकार की हैं। विभागों को समीक्षा बैठकों के लिए मर्ज की जा सकने वाली और नहीं की जा सकने वाली योजनाओं का पूरा ब्योरा विभागों को लाकर तथ्यात्मक जानकारी देनी होगी। स्कूली शिक्षा, समाज कल्याण की ऐसी कई योजनाएं हैं जो समान प्रकृति की हैं। अब मुख्य सचिव डीबी गुप्ता ने विभागों को निर्देशित किया है कि जब उनकी बैठक हो उससे पांच दिन पूर्व एक तय प्रपत्र में जरूरी तमाम सूचनाएं या जानकारी लेकर आएं।
इसमें संबंधित विभाग की एक जैसे लक्षित वर्ग वाली केन्द्र की मदद वाली योजनाओं के साथ अन्य योजनाओं का विवरण मांगा गया है। विभागों की उन योजनाओं का प्रस्ताव तैयार करके लाने के निर्देश जो कि किसी राज्य की स्कीम या केन्द्रीय मदद की स्कीम में मर्ज हो सकें या अन्य स्कीम्स के फंड का संबंधित योजना में उपयोग किया जा सके वह प्रस्ताव लाने के निर्देश दिए। विभाग अपने फील्ड ऑफिसेस या अन्य इकाइयों या सहायकों जैसे पद मर्ज करने का प्रस्ताव लेकर आएं जिससे कार्यक्रमों की बेहतर मॉनिटरिंग और क्रियान्वयन हो सके। यदि कोई विभाग कहता है कि उनकी योजनाएं मर्ज नहीं हो सकती तो इसके लिए उन्हें लिखित में पुख्ता कारण भी बताने होंगे।
वसुंधरा ने किया था अंब्रेला स्क्रीम के तहत लाने की एक्सरसाइज
पिछली वसुंधरा सरकार में भी एक जैसी योजनाओं को अंब्रेला स्कीम के तहत लाने की कवायद शुरू की गई थी। इसमें स्कूली शिक्षा और कृषि विभाग की कुछ योजनाओं को चिन्हित कर प्रा योगिक तौर पर कॉमन स्कीम के रूप में चलाने की कोशिश की थी लेकिन विभागों के मंत्रियों और अफसरों के बीच प्रशासनिक नियंत्रण को लेकर सहमति नहीं बन पाई। जिसके चलते यह कवायद ठंडे बस्ते में चली गई।